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"पिता की याद में / पूनम तुषामड़" के अवतरणों में अंतर
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यूँ तो रोज़ ही छलक जाती है | यूँ तो रोज़ ही छलक जाती है |
01:02, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
यूँ तो रोज़ ही छलक जाती है
चंद बूँदें इन आँखों से
जब भी आपकी याद आती है
परन्तु कई बार मन घुटता है
अंतर में आँखों से आँसू नहीं बहते
परन्तु मन में उमड़ आती हैं
कई यादों की धाराएँ एक साथ
बचपन से जवानी तक के
सफ़र की हर बात
तब ख़ुद को समझाने पर भी
नहीं होता है विश्वास
आज आप नहीं हैं हमारे बीच
अपने बच्चों के पास
पापा न जाने क्यूँ एक ही बात सताती है
जब भी आपकी याद आती है
क्यूँ चले गए आप अचानक
इतनी दूर
हम अभागी संतान न रह सके
अंतिम समय में भी आपके पास
आपके साथ ही जैसे चली गई है
हमारी हर ख़ुशी, हमारे चेहरों कीं रौनक
हमारा उत्साह, हमारा विश्वास