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शारदे / महेश अनघ

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मूर्तिवाला शारदे को
 
हथौड़े से पीटता है
 
एक काले दिन
 कलमुंही कलमुँही तू दो टके की क्यों गई थी कार में क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर 
पर्व वाले दिन
 तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है साहबों की साज़ साज सज्जा के लिए सामान है इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला 
और टाले दिन
 कामना थी पांव पाँव तेरे महावर से मांड़ते फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते क्या करें ऊंचे ऊँचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे 
मार डाले दिन
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