"शकेब जलाली / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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कहा जाता है कि शकेब ने 15 साल की उम्र से ही शेर कहना शुरू कर दिया था । इसकी कोई ख़ास ख़बर नहीं कि वो लिखा हुआ क्या है । अब तो जो दिखाई देता है वो तो न जाने कितने इंसानों की कुल जमा उम्र के बराबर का दिखाई देता है । आज की नस्ल की नई शायरी पर छाया शकेबाना अन्दाज़ इस बात का एक पाएदार सबूत है । | कहा जाता है कि शकेब ने 15 साल की उम्र से ही शेर कहना शुरू कर दिया था । इसकी कोई ख़ास ख़बर नहीं कि वो लिखा हुआ क्या है । अब तो जो दिखाई देता है वो तो न जाने कितने इंसानों की कुल जमा उम्र के बराबर का दिखाई देता है । आज की नस्ल की नई शायरी पर छाया शकेबाना अन्दाज़ इस बात का एक पाएदार सबूत है । | ||
− | 12 नवम्बर 1966 को रेल पटरी पर जाकर शकेब ने जान दे दी । पहले तो सिर्फ एक मजमूआ ‘रौशनी | + | 12 नवम्बर 1966 को रेल पटरी पर जाकर शकेब ने जान दे दी । पहले तो सिर्फ एक मजमूआ ‘रौशनी ऐ रौशनी’ ही मौजूद था पर बाद में लाहौर से ‘कुलियाते शकेब जलाली’ भी आ गया है । |
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12:22, 27 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
पैदाइश – अलीगढ़ के कस्बे जलाली में तारीख 1 अक्टूबर 1934 को । असल नाम – सैयद हसन रिज़वी । कलमी नाम - शकेब जलाली । बदायूँ से मैट्रिक तक की तालीम । बँटवारे का शिकार होकर पाकिस्तान चले गए, जहाँ बी०ए०पास किया । शादी की । जीने को नौकरियाँ की । पैसे की और ज़माने की तमाम दुश्वारियाँ झेलीं । दुश्वारियों ने उँगली पकड़कर दुनिया को एक नए रंग में देखने वाली नज़र दी । शकेब ने इस नज़र को ग़ज़लों की शक्ल दे दी जिससे हर कोई देख सकता है ।
कहा जाता है कि शकेब ने 15 साल की उम्र से ही शेर कहना शुरू कर दिया था । इसकी कोई ख़ास ख़बर नहीं कि वो लिखा हुआ क्या है । अब तो जो दिखाई देता है वो तो न जाने कितने इंसानों की कुल जमा उम्र के बराबर का दिखाई देता है । आज की नस्ल की नई शायरी पर छाया शकेबाना अन्दाज़ इस बात का एक पाएदार सबूत है ।
12 नवम्बर 1966 को रेल पटरी पर जाकर शकेब ने जान दे दी । पहले तो सिर्फ एक मजमूआ ‘रौशनी ऐ रौशनी’ ही मौजूद था पर बाद में लाहौर से ‘कुलियाते शकेब जलाली’ भी आ गया है ।