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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 19" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 181 से 190 तक'''
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(181)
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श्री केहू भाँति कृपासिंधु मेरी ओर हेरिये।
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मोको और ठौर न, सुटेक एक तेरिये।
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सहस सिलातें अति जड़ मति भई है।
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कासों कहौं कौन गति पाहनहिं दई है।
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पद-राग-जाग चहौं  कौसिक ज्यों कियो हौं।
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कलि-मल खल देखि भारी भीति भियो हैा।
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करम -कपीस बालि-बली,त्रास-त्रस्यो हौं।
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चाहत अनाथ-नाथ! तेरी बाँह बस्यो हौ।
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महा मोह-रावन बिभीषन ज्यों हयो हौ।
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त्राहि, तुलसिदास! त्राहि, तिहूँ ताप तयो हौ।
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19:09, 27 अप्रैल 2011 का अवतरण