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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 22" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 211 से 220 तक'''
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श्री रघुबीरकी यह बानि।
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नीचहू सों करत नेह सुप्रीति मन अनुमानि।।
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परम अधम निषाद पाँवर, कौन ताकी कानि?
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लियो सो उर लाइ सुत ज्यों प्रेमको पहिचानि।।
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गीध कौन दयालु, जो बिधि रच्यो हिंसा सानि?
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जनक ज्यों रघुनाथ ताकहँ दिया ेजल निज पानि।।
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प्रकृति-मलिन कुजाति सबरी सकल अवगुन-खानि।
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खात ताके दिये फल अति रूचि बखानि।।
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रजनिचर अरू रिपु बिभीषन सरन आयो जानि।
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भरत ज्यों उठि ताहि भेंटत देह-दसा  भुलानि।।
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कौन सुभगा सुसील बानर, पूजे भवन बपने आनि।।
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राम सहज कृपालु कोमल दीनहित दिनदानि।
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भजहि ऐसे प्रभुहि तुलसिदास कुटिल कपट न ठानि।।
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19:29, 28 अप्रैल 2011 का अवतरण