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देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते उकताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुये हुए जो दिन गंवाते गँवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये लिए
व्योम को छूते हुये हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां जहाँ रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुयी हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कंपा कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
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