|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
}}
{{KKCatKavitaKKCatGeet}}
<poem>
अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं
जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
</poem>