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|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
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अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं
जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
</poem>
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