Changes

{{KKPageNavigation
|पीछे=राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 10
|आगे=कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 3233
|सारणी=राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास
}}
<poem>
 '''राक्षस बानर संग्राम '''
'''( छंद संख्या (50) (51) )'''
(50)
 
ओझरीकी झोरी काँधे, आँतनिकी सेल्ही बाँधे,
मूँड़के कमंडल खपर किएँ कोरि कै।
 
जोगिनि झुटंुग झुंड- झुंड बनीं तापसीं -सी,
तीर-तीर बैठीं सो समर-सरि खोरि कै।।
 
श्रोनित सों सानि-सानि गूदा खात सतुआ -से,
प्रेत एक कपअत बहोरि घोरि-घोरि कै।
 
‘तुलसी’ बैताल-भूत साथ लिए भूतनाथु,
हेरि-हेरि हँसत हैं हाथ-हाथ जोरि कै।50।
 
(51)
 
राम सरासन तें चले तीर रहे न सरीर, हड़ावरि फूटीं।
रावन धीर न पीर गनी, लखि लै कर खप्पर जोगिनी जूटीं।।
 
श्रोनित -छीट छटानि जटे तुलसी प्रभु सोहैं महा छबि छूटीं।
मानो मरक्कत सैल बिसालमें फैलि चलीं बर बीरबहूटीं।51।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits