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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=कवितावली* [[राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 341]]|आगे=कवितावली* [[राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 362]]|सारणी=कवितावली* [[राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem> '''भाग-7 उत्तर काण्ड प्रारंभ'''  * [[राम की कृपालुता  (1)  बालि-सो बीरू बिदारि सुकंठु, थप्यो, हरषे सुर बाजने बाजे। पल में दल्यो दासरथीं दसकंधरू, लंक बिभीषनु राज बिराजे।।  राम सुभाउ सुनें ‘तुलसी’ हुलसै अलसी हम-से गलगाजे। कायर क्रूर कपूतनकी हद, तेउ गरीबनेवाज नेवाजे।1।/ तुलसीदास/ पृष्ठ 4]] (2)  बेद पढ़ैं बिधि, संभुसभीत पुजावन रावनसों नितु आवैं । दानव देव दयावने दीन दुखी दिन दूरिहि तेें सिरू नावैं।।  ऐसेउ भाग भगे दसभाल तेें जो प्रभुता कबि-कोबिद गावैं। रामके बाम भएँ तेहि बामहि बाम सबै सुख संपति लावैं।2। (3)  बेद बिरूद्ध मही, मुनि साधु ससोक किए सुरलोकु उजारो। और कहा कहौं , तीय हरी, तबहूँ करूनाकर कोपु न धारो।।  सेवक-छोह तें छाड़ी छमा , तुलसी लख्यो * [[राम! सुभाउ तिहारो। की कृपालुता तौलौं न दापु दल्यौ दसकंधर, जौलौं बिभीषन लातु न मारो।3।    </poem>तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
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