भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मित्र / उषा उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा उपाध्याय |संग्रह= }} Category: गुजराती भाषा {{KKCatKavita}}…)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
  
 
है  यूँ  तो  चंचल  हर  कोई रंग  इस  संसार के,
 
है  यूँ  तो  चंचल  हर  कोई रंग  इस  संसार के,
मृत्यु तलक हो साँस में ज़िसकी महक, वह इत्र मिले ।
+
मृत्यु तलक हो साँस में जिसकी महक, वह इत्र मिले ।
  
 
बाढ़ की उत्ताल लय में, बिजली कड़के, पाल टूटे राह में,
 
बाढ़ की उत्ताल लय में, बिजली कड़के, पाल टूटे राह में,

14:46, 7 मई 2011 के समय का अवतरण

रो सकें जिनके कंधे पर सर रखकर, ऐसा मित्र मिले,
कालांतर तक हो अचल, बस एक ऐसा छत्र मिले ।

है यूँ तो चंचल हर कोई रंग इस संसार के,
मृत्यु तलक हो साँस में जिसकी महक, वह इत्र मिले ।

बाढ़ की उत्ताल लय में, बिजली कड़के, पाल टूटे राह में,
उस समय जो नाव लगाए पार, वह नक्षत्र मिले ।

और बाट जिसकी देखी हो कितने ही सालों तक,
वह मौत की मंज़िल पर आकर मिले, वह पत्र मिले ।

सब कुछ ही हो पूर्ण ऐसी ज़िन्दगी में क्या मज़ा है ?
अपने ही रंगो से अंकित करूँ ऐसा अधूरा चित्र मिले ।

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा