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09:18, 9 मई 2011 के समय का अवतरण

रात बढ़ रही है अपने चरम की ओर
और शहर तैयारी कर रहा है सोने की
कुछ दुकानें अभी भी खुली हैं
निर्भीक ग्राहकों को पेय परोसती हुई

चारों तरफ घूम रही हैं गाडिय़ॉं
पुलिस जासूसों की टटोलती हुई अपराधियों को
अचानक एक चीख निकलती है कहीं दूर से
हेडलाइट की रोशनी की तरह
और कत्ल हो जाता है किसी का
सोये लोग जाग उठते हैं आस-पास के
और मचाते हैं शोर कौओं की तरह

उड़ती है यह खबर आकाश में
और छप जाती है इन्तजार करते अखबारों में
सुबह-सुबह पढ़ते हैं लोग जिसे
हाथ की अंगुलियों में थामकर
चाय की गर्म- गर्म प्याली के साथ
जैसे यह कोई अखबार नहीं
ताजे बिस्कुट का एक टुकड़ा हो।