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( छंद 169, 170)
(169)
गौरी नाथ, भोरानाथ, भवत भवानीनाथ!
बिकल बिलोकियत , नगरी बिहालकी।।
(170) पुरी-सुरबेलि केलि काटत किरात कलि, निठुर निहारिये उघारि डीठि भालकी।।   (170)
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