|रचनाकार=जगनिक
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[[Category:दोहेलोकसाहित्य]]
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'''युध्द-वर्णन
है कोउ क्षत्री तुम्हारे दल में। सन्मुख लडै हमारे साथ॥
यह सुनि पिरथी बोलन लागे। लाखनि लाखन सुनो हमारी बात।
बारह रानिन के इकलाता। औ सोलै के सर्व सिंगार॥
आस लकडिया हौ जैचंद की। नाहक देहौ प्राण गँवाय।