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"जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 12" के अवतरणों में अंतर

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( छंद 81 से 88 तक)
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मंगल भूषन बसन मंजु तन सोहहीं।
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देखि मूढ़ महिपाल मोह बस मोहहिं।81।
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रूप रासि जेहि ओर सुभायँ निहारइ।
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नील कमल सर श्रेनि मयन जनु डारइ।।
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छिनु सीतहिं छिनु रामहि पुरजन देखहिं।
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रूप् सील बय बंस बिसेष बिसेषहिं।।
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राम दीख जब  सीय सीय रघुनायक ।
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दोउ तन तकि तकि मयन सुधारत सायक।।
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प्रेम प्रमोद परस्पर प्रगटत गोपहिं।
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जनु हिरदय गुन ग्राम  थूनि थिर रोपहिं।।
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राम सीय बय समौ सुभाय सुहावन।
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नृप जोबन छबि पुरइ चहत जनु आवन।।
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सो छबि जाइ न बरनि देखि मनु मानै ।
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सुधा पान करि मूक कि स्वाद बखानै।।
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तब बिदेह पन बंदिन्ह प्रगट  सुनायउ।
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उठे भूप आमरषि सगुन नहिं पायउ।88।
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नहिं सगुन पायउ रहे मिसु करि एक धनु देखन गए।
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टकटोरि कपि ज्यों नारियलु, सिरू नाइ सब बैठत भए। ।
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एक करहिं दाप, न चाप  सज्जन बचन जिमि टारें टरैं।
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नृप नहुष ज्यों सब कें बिलोकत बुद्धि  बल बरबस हरै।11।
  
  

11:19, 15 मई 2011 के समय का अवतरण

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 12)
 
रंगभूमि में राम-5

 ( छंद 81 से 88 तक)

 मंगल भूषन बसन मंजु तन सोहहीं।
देखि मूढ़ महिपाल मोह बस मोहहिं।81।

 रूप रासि जेहि ओर सुभायँ निहारइ।
नील कमल सर श्रेनि मयन जनु डारइ।।

 छिनु सीतहिं छिनु रामहि पुरजन देखहिं।
 रूप् सील बय बंस बिसेष बिसेषहिं।।

राम दीख जब सीय सीय रघुनायक ।
 दोउ तन तकि तकि मयन सुधारत सायक।।

 प्रेम प्रमोद परस्पर प्रगटत गोपहिं।
जनु हिरदय गुन ग्राम थूनि थिर रोपहिं।।

 राम सीय बय समौ सुभाय सुहावन।
नृप जोबन छबि पुरइ चहत जनु आवन।।

सो छबि जाइ न बरनि देखि मनु मानै ।
सुधा पान करि मूक कि स्वाद बखानै।।

तब बिदेह पन बंदिन्ह प्रगट सुनायउ।
 उठे भूप आमरषि सगुन नहिं पायउ।88।

(छंद-11)

नहिं सगुन पायउ रहे मिसु करि एक धनु देखन गए।
टकटोरि कपि ज्यों नारियलु, सिरू नाइ सब बैठत भए। ।

एक करहिं दाप, न चाप सज्जन बचन जिमि टारें टरैं।
नृप नहुष ज्यों सब कें बिलोकत बुद्धि बल बरबस हरै।11।


(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 12)

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