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"देश-विभाजन-३ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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01:26, 21 मई 2011 के समय का अवतरण
विदेश की कुनीति हो गई सफल,
समस्त जाति की न काम दी अक़ल,
सकी न भाँप एक चाल, एक छल,
फ़रक़ हमें दिखा न फूल-शूल में।
पहन प्रसून हार हम खड़े हुए,
कि खार मौत के गले पड़े हुए,
कृतज्ञ हम ब्रिटेन के बड़े हुए,
कि वह हमें गया ढकेल भूल में।
यही स्वतंत्रता-लता गया लगा,
कि मुल्क ओर-छोर खून से रंगा,
बिखेर बीज फूट के हुआ अलग,
स्वदेश सर्व काल को गया ठगा,
गरल गया उलीच नीच मूल में।