"स्वाद / अनिल विभाकर" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मुझे उन आँखों में आँसू नहीं दिखने चाहिए जो मुझे प्रिय हैं | |
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उन होंठों पर मुस्कान चाहिए जो मुझे प्रिय हैं | उन होंठों पर मुस्कान चाहिए जो मुझे प्रिय हैं | ||
− | उस चेहरे पर उदासी नहीं, | + | उस चेहरे पर उदासी नहीं, ख़ुशी चाहिए जो मुझे प्रिय है |
− | उस दिल में हताशा नहीं चाहिए जिसमें मैं रहता | + | उस दिल में हताशा नहीं चाहिए जिसमें मैं रहता हूँ |
− | सागर की लहरों सा प्यार हमेशा बुलंदियों की ओर ले जाता है | + | सागर की लहरों-सा प्यार हमेशा बुलंदियों की ओर ले जाता है |
− | + | ज़िंदगी धरती पर तो होती है, देखती है हमेशा आसमान की ओर | |
आसमान में उड़ते हैं पंछी बिना धरती का सहारा लिए | आसमान में उड़ते हैं पंछी बिना धरती का सहारा लिए | ||
− | यह नहीं कहता कि धरती | + | यह नहीं कहता कि धरती ज़रूरी नहीं |
बिना आसमान के धरती भी बेकार है | बिना आसमान के धरती भी बेकार है | ||
आसमान में सूरज होता है | आसमान में सूरज होता है | ||
तारे होते हैं | तारे होते हैं | ||
− | + | चाँद होता ख़ूबसूरत-सा बिल्कुल सोने जैसा | |
इन सब के बगैर सूनी हो जाएगी धरती | इन सब के बगैर सूनी हो जाएगी धरती | ||
बिल्कुल ऊसर लगेगी रेगिस्तान की तरह | बिल्कुल ऊसर लगेगी रेगिस्तान की तरह | ||
− | स्वाद के बगैर नहीं चलती | + | स्वाद के बगैर नहीं चलती ज़िंदगी |
बिना किसी स्वाद के कैसे कटेगा यह पहाड़ | बिना किसी स्वाद के कैसे कटेगा यह पहाड़ | ||
− | पहाड़ नहीं पंछी बनने दो | + | पहाड़ नहीं पंछी बनने दो इसे । |
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13:31, 22 मई 2011 के समय का अवतरण
मुझे उन आँखों में आँसू नहीं दिखने चाहिए जो मुझे प्रिय हैं
उन होंठों पर मुस्कान चाहिए जो मुझे प्रिय हैं
उस चेहरे पर उदासी नहीं, ख़ुशी चाहिए जो मुझे प्रिय है
उस दिल में हताशा नहीं चाहिए जिसमें मैं रहता हूँ
सागर की लहरों-सा प्यार हमेशा बुलंदियों की ओर ले जाता है
ज़िंदगी धरती पर तो होती है, देखती है हमेशा आसमान की ओर
आसमान में उड़ते हैं पंछी बिना धरती का सहारा लिए
यह नहीं कहता कि धरती ज़रूरी नहीं
बिना आसमान के धरती भी बेकार है
आसमान में सूरज होता है
तारे होते हैं
चाँद होता ख़ूबसूरत-सा बिल्कुल सोने जैसा
इन सब के बगैर सूनी हो जाएगी धरती
बिल्कुल ऊसर लगेगी रेगिस्तान की तरह
स्वाद के बगैर नहीं चलती ज़िंदगी
बिना किसी स्वाद के कैसे कटेगा यह पहाड़
पहाड़ नहीं पंछी बनने दो इसे ।