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"एक लड़की की शिनाख़्त / अलका सिन्हा" के अवतरणों में अंतर
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निकल आया लावा | निकल आया लावा | ||
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रूपहीन, आकारहीन, | रूपहीन, आकारहीन, | ||
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मेरी पहचान | मेरी पहचान | ||
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जीवन पाने से भी पहले | जीवन पाने से भी पहले | ||
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और अधिक जीने की ! | और अधिक जीने की ! | ||
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कि मेरी हत्या की गई ! | कि मेरी हत्या की गई ! | ||
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21:15, 28 मई 2011 के समय का अवतरण
अभी तो मैंने
रूप भी नहीं पाया था
मेरा आकार भी
नहीं गढ़ा गया था
स्पन्दनहीन मैं
महज़ माँस का एक लोथड़ा
नहीं, इतना भी नहीं
बस, लावा भर थी...
पर तुमने
पहचान लिया मुझे
आश्चर्य !
कि पहचानते ही तुमने
वार किया अचूक
फूट गया ज्वालामुखी
और बिलबिलाता हुआ
निकल आया लावा
थर्रा गई धरती
स्याह पड़ गया आसमान ।
रूपहीन, आकारहीन,
अस्तित्वहीन मैं
अभी बस एक चिह्न भर ही तो थी
जिसे समाप्त कर दिया तुमने ।
सोचती हूं कितनी सशक्त है
मेरी पहचान
कि जिसे बनाने में
पूरी उम्र लगा देते हैं लोग ।
जीवन पाने से भी पहले
मुझे हासिल है वह पहचान
अब आवश्यकता ही क्या है
और अधिक जीने की !
मुझे अफ़सोस नहीं
कि मेरी हत्या की गई !