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{{KKRachna
|रचनाकार=अलका सिन्हा
|संग्रह= }}{{KKCatKavita}}
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सुबह की चाय की तरह
ज़िन्दगी की छोटी-बड़ी कठिनाइयों में
उसी शिद्दत से तलाशती हूँ तुम्हें
पर्स की पिछली जेब
और टटोलने लगती हैं
डिस्प्रिन की गोली।गोली ।
ठीक उसी वक्तवक़्त
बनफूल की हिदायती गंध के साथ
जब थपकने लगती हैं तुम्हारी उंगलियाँउँगलियाँ
टनकते सिर पर
तब अनहद नाद की तरह
और उम्र के इस दौर में पहुँचकर
समझने लगती हूँ मैं
मधुमास का असली अर्थ।अर्थ ।
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