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रविशंकर पाण्डेय / परिचय

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डा0 रविशंकर पाण्डेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश '''व्यवस्था के चित्रकूट जनपद में सन 1 अप्रैल 1957 को हुआ । आपने इलाहाबाद विश्वविद्याालय से वनस्पति विज्ञान में एम0एस-सी0 करने के उपरांत वहीं से डॉक्टर आफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1988 में इक्कीस वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में आपका चयन हो गया। संप्रति आप लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राज्य सचिवालय में वरिष्ट अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।बचपन से ही लेखन में अभिरूचि होने के कारण छिट पुट लिखते रहे। आपने विज्ञान विषयों पर अनेक लेख लिखे हैं जिन्हे देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान मिला है। आपने कविताएँ (नवगीत) भी लिखी हैं जो आकार, आशय, कथन, कथाक्रम, कथादेश ,गूँज जनसत्ता-वार्षिकांक, परिवेश, माध्यम, उत्तर प्रदेश, वर्तमान-साहित्य, वागार्थ , वचन, संवेद, साहित्य अमृत, स्वाधीनता-वार्षिकांक, साक्षातकार, हंस तथा नया ज्ञानोदय सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान पा चुके हैं।आपकी प्रकाशित क्रतियों में ‘अंधड़ में दूब’(2000) तथा ‘इस आखेटक समय में’ (2010) शीर्षक से दो कविता संग्रह प्रकाशित बदले हुये हैं । गद्य रचनाओं में लोक विज्ञान की पुस्तके ‘हम और हमारा पर्यावरण’ ‘प्रदूषण हमारे आसपास’, ‘मिट्टी मिजाज प्रति व्यंग्यात्मक विरोध को उपजाऊ कैसे बनायें?’, दर्शाता कविः डा0 ‘फसलों की खुराक’ , तथा ‘पर्यावरण चिंतन ’ प्रकाशित हो चुकी हैं।आपकी पुस्तक ‘हम और हमारा पर्यावरण’ पर गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग द्वारा वर्ष 2003 में राजभाषा पुरस्कार प्राप्त हुआ ।इफको संस्था नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2004 में आपको हिंदी सेवा सम्मान प्रदान किया गया।राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2009 में आपको ‘साहित्य गौरव सम्मान ’ प्रदान किया गया।[[रविशंकर पाण्डेय]]''' राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2010 में आपको ‘सुमित्रा नंदन पंत सम्मान ’ प्रदान किया गया।अपका संपर्क सूत्र हैआलेख:- 3/29 विराम खण्ड , गोमती नगर, लखनऊ, 226010दूरभाष संख्या 0522 2303329, मोबाइल न0 9415799625आपका ई मेल पता है [[अशोक कुमार शुक्ला]] कततंअपचबे/हउंपस
डा0 [[रविशंकर पाण्डेय]] जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद के ग्राम छीबों में सन 1 अप्रैल 1957 को हुआ । आपकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुयी तथा उच्च शिक्षा हेतु आप प्रयाग आये जहाँ इलाहाबाद विश्वविद्याालय से वनस्पति विज्ञान में एम0एस-सी0 करने के उपरांत वहीं से डॉक्टर आफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की। विलक्षण बुद्धि के होने के कारण वर्ष 1988 में इक्कीस वर्ष की आयु में आपने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर राज्य सिविल सेवा में पदार्पण किया। संप्रति आप लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राज्य सचिवालय में वरिष्ट अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।
इनके पिता जी संस्कृत साहित्य के अध्येता सो साहित्याभिरूचि इन्हें विरासत में मिली, परन्तु इनकी बहन कमला दीदी ने कविता से इनका प्रथम परिचय कराया जिसका उल्लेख इन्होने अपने पहले प्रकाशित कविता संग्रह अंधड़ में दूव के आत्मकथ्य में भी किया है। बचपन से ही लेखन में अभिरूचि होने के कारण छिट पुट लिखते रहे। आपने विज्ञान विषयों पर अनेक लेख लिखे हैं जिन्हे देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान मिला है। आपने कविताएँ (नवगीत) भी लिखी हैं जो आकार, आशय, कथन, कथाक्रम, कथादेश ,गूँज जनसत्ता-वार्षिकांक, परिवेश, माध्यम, उत्तर प्रदेश, वर्तमान-साहित्य, वागार्थ , वचन, संवेद, साहित्य अमृत, स्वाधीनता-वार्षिकांक, साक्षातकार, हंस तथा नया ज्ञानोदय सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान पा चुके हैं।
डा0 रविशंकर पाण्डेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद आपकी प्रकाशित क्रतियों में सन 1 अप्रैल 1957 को हुआ । आपने इलाहाबाद विश्वविद्याालय ‘अंधड़ में दूब’(2000) तथा ‘इस आखेटक समय में’ (2010) शीर्षक से वनस्पति विज्ञान दो कविता संग्रह प्रकाशित हुये हैं । आपकी पद्य रचनाओं के संबंध में एम0एसचर्चित साहित्यकार श्री [[विभूति नारायण राय]] ने लिखा हैः-सी0 करने के उपरांत वहीं  ‘‘ ....हिंदी कविता में गीत पिछले कुछ दशकों से डॉक्टर आफ फिलासफी हाशिये पर ढकेल दिये गये हैं। उन्हे गंभीर रचनाकर्म की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1988 श्रेणी से निकालकर कवि सम्मेलनो में इक्कीस वर्ष की आयु मंचों पर गलेबाजी का माध्यम मात्र समझा जाने लगा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश [[रविशंकर पाण्डेय]] जैसे गीतकार कवि एक नयी आश्वस्ति की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में आपका चयन हो गया। संप्रति आप लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राज्य सचिवालय तरह हमारे सामने आते हैं। शास्त्रीय काव्यानुशासन से लैस रविशंकर लोक कवि हैं। उनके गीतों में वरिष्ट अधिकारी बुन्देलखंड की धरती सीझती है।.......इनकी रचनायें सिर्फ इनकी रचनात्मक सामर्थ्य के रूप बारे में कार्यरत आश्वस्त नहीं करतीं बल्कि हिंदी गीत परंपरा पर रूक कर सोचने को आमंत्रित करती हैं।....’’बचपन अनामिका प्रकाशन इलाहाबाद से ही लेखन में अभिरूचि होने प्रकाशित इनके दूसरे कविता संग्रह के कारण छिट पुट लिखते रहे। आपने विज्ञान विषयों प्रकाशन पर अनेक लेख लिखे हैं जिन्हे देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान मिला सर्वश्री [[स्वप्निल श्रीवास्तव]] जी ने लिखा हैः- ‘‘ .....रविशंकर पाण्डेय गीत के अपवाद है। आपने कविताएँ (नवगीत) भी लिखी उन्होंने गीतों के परम्परागत ढाँचे को तोड़कर अभिव्यक्ति के खतरे उठाये हैं जो आकार, आशयउन्होंने अपने ही बनाये ढ़ांचे को तोड़कर अतिक्रमण किया है, कथन, कथाक्रमउन्होंने गीतों को प्रेम, कथादेश अवसाद,गूँज जनसत्तामौसम तक सीमित न करके उसे आज के निर्मम यथार्थ और आम आदमी के दुःख-वार्षिकांक, परिवेश, माध्यम, उत्तर प्रदेश, सुख और संघर्ष के साथ जोड़ा है। मनुष्य की बिडम्बनायें भी उनके गीतों का वर्ण्य विषय हैं।... श्री पाण्डेय की कविताओं में वर्तमानराजनैतिक वातावरण इस प्रकार चिन्हित होता हैः-साहित्य संसद तो खो गयी बहस में  चौपालें अफवाहों में , वागार्थ , वचन दिल्ली खोने केा आतुर है गोरी-गोरी बाहों में, संवेद, साहित्य अमृत, स्वाधीनता जन-वार्षिकांकगण-मन अधिनायक वाली  यह तस्वीर अधूरी है। यह श्री पाण्डेय जी की क्षमता है कि महत्वपूर्ण राजकीय अधिकारी होने के बावजूद विकास के घोड़े की गति को बेबाकी से प्रदर्शित कर सके हैंः- सरपट दौड़ रहे गाँवों में ये कागज के घोडे़, साक्षातकारअश्वमेघ के लिए न जाने किस राजा ने छोडे। और राम भरोसे के खातिर भी संविधान में अनुच्छेद है, हंस तथा नया ज्ञानोदय सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं  भूल चूक लेनी देनी केा क्षमा याचना और खेद है। ’’  शायद इसीलिये श्रीयुत [[स्वप्निल श्रीवास्तव]] ने इन्हेे वैचारिक रूप से दृढ़ कवि की संज्ञा दी है। श्री पाण्डेय स्पष्टवादी और बेधड़क लहजे में स्थान पा चुके अपनी बात कहते हैं।इसीलिये श्री [[स्वप्निल श्रीवास्तव]] ने लिखा है कि रविशंकर पाण्डेय हिंदी के प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की धरती के कवि हैं । इनको पढ़ते हुये कई अवसरों पर यह आभास होता है कि जैसे हम [[केदारनाथ अग्रवाल]]जी को पढ़ रहे हैं।आपकी प्रकाशित क्रतियों वही किसानों की लाचारी, श्रमिकों का शोषण, मानवमूल्यों का हृास तथा भ्रष्ट शासन के प्रति तीव्र विरोध के स्वर श्री पाण्डेय की रचनाओं में ‘अंधड़ भी दृष्टिगोचर होता है जैसा दशकों पूर्व [[केदारनाथ अग्रवाल]] के कविताओं में दूब’व्यक्त हुआ था। (2000‘हे मेरी तुम’ संग्रह में पूंजीवादी व्यवस्था के प्रति [[केदारनाथ अग्रवाल]] जी के उद्गार) तथा  डंकमार संसार न बदला प्राणहीन पतझार न बदला बदला शासन, देश न बदला राजतंत्र का भेष न बदला, भाव बोध उन्मेष न बदला, हाड़-तोड़ भू भार न बदला कैसे जियें? यही है मसला नाचे कोैन बजाये तबला?  ( ‘इस आखेटक समय में’ (2010संग्रह में गिरती साख के प्रति कवि डा0 [[रविशंकर पाण्डेय]] के उद्गार) शीर्षक से दो   वैसे तो बाहर दिखने में मौसम लगता  खुशगवार है,  लेकिन अन्दर  घुटन बहुत है  घटाटोप है अंधकार है,  सब कुछ बदला  पर मौसम का  बदला हुआ मिजाज नहीं है! पुस्तक वार्ता के नवंबर-दिसंबर 2010 अंक में छपी इनके दूसरे कविता संग्रह की समीक्षा में समीक्षाकार [[हितेश कुमार सिंह]] द्वारा इस संग्रह को ‘‘ भ्ष्ट एवं निकम्मी व्यवस्था के प्रति कवि का तीव्र एवं व्यंग्यात्मक विरोध की’’ संज्ञा दी गयी है।  आपकी प्रकाशित हुये हैं । गद्य रचनाओं में लोक विज्ञान की पुस्तके ‘हम और हमारा पर्यावरण’ ‘प्रदूषण हमारे आसपास’, ‘मिट्टी को उपजाऊ कैसे बनायें?’, ‘फसलों की खुराक’ , तथा ‘पर्यावरण चिंतन ’ प्रकाशित प्रमुख हैं जो चर्चित और पुरस्कृत हो चुकी हैं।आपकी पुस्तक ‘हम और हमारा पर्यावरण’ पर गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग द्वारा वर्ष 2003 में राजभाषा पुरस्कार प्राप्त हुआ ।इफको संस्था नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2004 में आपको हिंदी सेवा सम्मान प्रदान किया गया।राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2009 में आपको ‘साहित्य गौरव सम्मान ’ प्रदान किया गया। राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2010 में आपको ‘सुमित्रा नंदन पंत सम्मान ’ प्रदान किया गया।अपका संपर्क सूत्र है- 3/29 विराम खण्ड , गोमती नगर, लखनऊ, 226010दूरभाष संख्या 0522 2303329, मोबाइल न0 9415799625आपका ई मेल पता है drravipcs@gmail
डा0 रविशंकर पाण्डेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद में सन 1 अप्रैल 1957 को हुआ । आपने इलाहाबाद विश्वविद्याालय से वनस्पति विज्ञान में एम0एस-सी0 करने के उपरांत वहीं से डॉक्टर आफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1988 में इक्कीस वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में आपका चयन हो गया। संप्रति आप लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राज्य सचिवालय में वरिष्ट अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।
बचपन से ही लेखन में अभिरूचि होने के कारण छिट पुट लिखते रहे। आपने विज्ञान विषयों पर अनेक लेख लिखे हैं जिन्हे देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान मिला है। आपने कविताएँ (नवगीत) भी लिखी हैं जो आकार, आशय, कथन, कथाक्रम, कथादेश ,गूँज जनसत्ता-वार्षिकांक, परिवेश, माध्यम, उत्तर प्रदेश, वर्तमान-साहित्य, वागार्थ , वचन, संवेद, साहित्य अमृत, स्वाधीनता-वार्षिकांक, साक्षातकार, हंस तथा नया ज्ञानोदय सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान पा चुके हैं।
आपकी प्रकाशित क्रतियों में ‘अंधड़ में दूब’(2000) तथा ‘इस आखेटक समय में’ (2010) शीर्षक से दो कविता संग्रह प्रकाशित हुये हैं । गद्य रचनाओं में लोक विज्ञान की पुस्तके ‘हम और हमारा पर्यावरण’ ‘प्रदूषण हमारे आसपास’, ‘मिट्टी को उपजाऊ कैसे बनायें?’, ‘फसलों की खुराक’ , तथा ‘पर्यावरण चिंतन ’ प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपकी पुस्तक ‘हम और हमारा पर्यावरण’ पर गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग द्वारा वर्ष 2003 में राजभाषा पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
इफको संस्था नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2004 में आपको हिंदी सेवा सम्मान प्रदान किया गया।
 
राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2009 में आपको ‘साहित्य गौरव सम्मान ’ प्रदान किया गया।
राज्य कर्मचारी साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा वर्ष 2010 में आपको ‘सुमित्रा नंदन पंत सम्मान ’ प्रदान किया गया। 
अपका संपर्क सूत्र है- 3/29 विराम खण्ड , गोमती नगर, लखनऊ, 226010
 
दूरभाष संख्या 0522 2303329, मोबाइल न0 9415799625
 
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