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विष-पुरुष / रणजीत
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15:44, 30 जून 2011
आग
अन्तर में दबाए हूँ जिसे मैं
झपट कर कोई लपट उसकी तुम्हें
छूले
छू ले
कि वे
चिन्गारियाँ
चिंगारियाँ
जो
युगों से सोई हुई हैं सर्द साँसों में तुम्हारी
आज फिर जग जाएँ
अनिल जनविजय
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