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"मदारी की लड़की / भारतेन्दु मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आज भी मदारी से बहुत मार  
 
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खाई है

08:46, 5 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

मदारी की लड़की
सपनों की किरचों पर
नाच रही लड़की ।

अपने ही
झोंक रहे चूल्हे की आग में
रोटी-पानी ही तो है इसके
भाग में
संबंधों के अलाव ताप
रही लड़की ।

ड्योढ़ी की
सीमाएँ लाँघ नहीं पाई है
आज भी मदारी से बहुत मार
खाई है
तने हुए तारों पर काँप
रही लड़की ।

तुलसी के
चौरे पर आरती सजाए है
अपनी उलझी लट को फिर फिर
सुलझाए है
बचपन से रामायन बाँच
रही लड़की ।