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दुनिया को अपनी बात सुनाने चले हैं हम / गुलाब खंडेलवाल
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20:38, 6 जुलाई 2011
मन के हैं द्वार-द्वार पे पहरे लगे हुए
उनको
उन्हीं से
उन्हींसे
छिपके चुराने चले हैं हम
यों तो कहाँ नसीब थे दर्शन भी आपके!
Vibhajhalani
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