भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात के आसेब से / शहंशाह आलम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहंशाह आलम |संग्रह=वितान }} {{KKCatKavita}} <poem> ''प्रो जबिर …) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ''प्रो | + | ''प्रो जाबिर हुसेन के विचारों के प्रति'' |
मिरा कमरा आज़ाद हुआ | मिरा कमरा आज़ाद हुआ |
13:02, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
प्रो जाबिर हुसेन के विचारों के प्रति
मिरा कमरा आज़ाद हुआ
रात के आसेब से
आके देख
मैं ज़िंदा हूं
मैं अभी ज़िंदा हूं
इस दुश्मन शहर में
फिर से एक पूरा दिन
जीने के लिए।