भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ग्लोब / अनुज लुगुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> मेरे हाथ में क़ल…)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
मैं उसमें महान दार्शनिकों
 
मैं उसमें महान दार्शनिकों
 
और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगा
 
और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगा
जिसे मैं गा सकूँ
+
जिन्हें मैं गा सकूँ
 
लेकिन मुझे दिखाई दी
 
लेकिन मुझे दिखाई दी
 
क्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरें
 
क्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरें

12:28, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

मेरे हाथ में क़लम थी
और सामने विश्व का मानचित्र
मैं उसमें महान दार्शनिकों
और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगा
जिन्हें मैं गा सकूँ
लेकिन मुझे दिखाई दी
क्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरें
उस पार के इंसानी ख़ून से
इस पार की लकीर, और
इस पार के इंसानी ख़ून से
उस पार की लकीर ।

मानचित्र की तमाम टेढ़ी-मेंढ़ी
रेखाओं को मिलाकर भी
मैं ढूँढ़ नही पाया
एक आदमी का चेहरा उभारने वाली रेखा
मेरी गर्दन ग्लोब की तरह ही झुक गई
और मैं रोने लगा ।

तमाम सुने-सुनाए, बताए
तर्कों को दरकिनार करते हुए
आज मैंने जाना
ग्लोब झुका हुआ क्यों है ।