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भए अति निठुर / घनानंद

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|रचनाकार=घनानंद
}}
[[Category:कवित्त]]
 
::::'''कवित्त'''<br><br>
भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,<br>
::अब जिय जारत कहौ धौ कौन न्याय है।<br>
सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,<br>
::काहू कलपायहै सु कैसे कल पायहै।। 7 ।।पायहै॥<br>