भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"निर्वेद / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=चंदन की कलम शहद में डुबो-…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
हम केवल बातें कर सकते हैं, करें | हम केवल बातें कर सकते हैं, करें | ||
होना है जो होगा, भागें या डरें | होना है जो होगा, भागें या डरें | ||
− | सब कुछ कह देगी एक पंक्ति | + | सब कुछ कह देगी एक पंक्ति अख़बार की |
यह तो कहो मरने के बाद कहाँ जायें! | यह तो कहो मरने के बाद कहाँ जायें! | ||
इतना कुछ लेकर क्या शून्य में समायें! | इतना कुछ लेकर क्या शून्य में समायें! | ||
सोयें क़यामत तक, उठकर भाग आयें! | सोयें क़यामत तक, उठकर भाग आयें! | ||
− | कोई | + | कोई ख़बर मिलती नहीं उस पार की |
आओ कुछ बात करें घर-परिवार की | आओ कुछ बात करें घर-परिवार की | ||
अपने-पराये की, नगद-उधार की | अपने-पराये की, नगद-उधार की | ||
<poem> | <poem> |
01:14, 20 जुलाई 2011 का अवतरण
आओ कुछ बात करें घर-परिवार की
अपने-पराये की, नगद-उधार की
न तो कुछ बढ़ायें ही और न ही छोड़ें
कुछ भी न जोड़ें और कुछ भी न तोड़ें
सबके ही बीच रहें, सबसे मुंह मोड़ें
चर्चा भर लाभ-हानि, जीत और हार की
दुनिया की आबादी बढ़ती है, बढ़े
चाँद पर मनुष्य अगर चढ़ता है, चढ़े
कविता को छोड़ गद्य पढ़ता है, पढ़े
नियति यह हमारी है, चिंता बेकार की
लोग आत्महत्या पर उतारू हैं, मरे
हम केवल बातें कर सकते हैं, करें
होना है जो होगा, भागें या डरें
सब कुछ कह देगी एक पंक्ति अख़बार की
यह तो कहो मरने के बाद कहाँ जायें!
इतना कुछ लेकर क्या शून्य में समायें!
सोयें क़यामत तक, उठकर भाग आयें!
कोई ख़बर मिलती नहीं उस पार की
आओ कुछ बात करें घर-परिवार की
अपने-पराये की, नगद-उधार की