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"राई में सुमेरु ज्यों विशाल वट वृक्ष में हो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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− | |संग्रह=बलि-निर्वास / गुलाब खंडेलवाल
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− | बाणासुर--
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− | राई में सुमेरु ज्यों विशाल वट वृक्ष में हो
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− | रूप यह परम विराट् था छिपा कहाँ
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− | वामन के वपु में समा जो नहीं पाता अब
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− | तीनों लोकों में, त्रिगुणों में तीनों काल में
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− | बढ़कर? अनंत शीश, नेत्र, वकतृ, ज्वाल-जिह्वा,
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− | बाहु हैं अनंत दिव्य आयुध धरे हुये
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− | व्याप्त दस दिशाओं में, विराट् भीम श्याम पद
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− | पूरे ब्रह्माण्ड को है चाहता समेटना
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− | एक ही उड़ान में, तलातल वितल सप्त
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− | फोड़ता चरण दूसरा अनंत शून्य में
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− | सारी महासृष्टि को लपेटे लिये जा रहा
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− | धूमकेतु-पंक्ति-सा, चिंघाड़ रहे दिग्नाग
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− | सूँड को उठाये, कोल कमठ, फणीन्द्र देखो
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− | कलमला चाहते अखंड ब्रह्माण्ड को
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− | गृह-पिंड-अंबर के साथ छोड़ भागना
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− | भीत महाप्रलय की शंका से
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− | इंद्र-- असुरपति!
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− | आज प्रतिशोध का दिवस है!
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02:45, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण