कभी तो यह न हुआ आके दो घड़ी मिल जायँ
खबर ख़बर ही पूछते रहते हैं आप, क्या कहिए!
खादी पड़ी थी नींव नीवँ ही आँसू की धार पर जिनकी महल वे कांच काँच के ढहते हैं आप, क्या कहिए!
कहा कि अब न सहेंगे तो हँसके बोल उठे
'सही है, खूब ख़ूब है, सहते हैं आप, क्या कहिए!'
रहें जो चुप तो वे देते हैं छेड़, 'चुप क्यों हैं!'