{{ज्ञानसन्दूक लेखकKKRachnakaarParichay| नाम रचनाकार= वासुदेव सिंह त्रिलोचन| चित्र = Trilochan.jpg| चित्र आकार = 170px| चित्र शीर्षक = त्रिलोचन शास्त्री| उपनाम = त्रिलोचन शास्त्री| जन्मतारीख़ = [[20 अगस्त]], [[1917]]| जन्मस्थान = [[सुल्तानपुर जिला|सुल्तानपुर]], [[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]| मृत्युतारीख़ = [[9 दिसंबर]], [[2007]]| मृत्युस्थान = [[गाजियाबाद जिला|गाज़ियाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]| कार्यक्षेत्र = | राष्ट्रीयता = [[भारत|भारतीय]]| भाषा = [[हिन्दी]]| काल = [[आधुनिक काल]]<!--is this for her writing period, or for her life period? I'm not sure...-->| विधा = गद्य और पद्य| विषय = [[गीत]], [[नवगीत]], [[कविता]], [[कहानी]], [[लेख]]| आन्दोलन = [[प्रगतिशील धारा]] <br>[[यथार्थवाद]]| पहली कृति = [[धरती]] [[कविता संग्रह]]| प्रभाव डालने वाला = <!--यह लेखक किससे प्रभावित होता है-->| प्रभावित = <!--यह लेखक किसको प्रभावित करता है-->| हस्ताक्षर = | जालपृष्ठ = | टीका-टिप्पणी = | मुख्य काम =
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कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।
उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से बनारस विश्वविद्यालय तक अपने सफर में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। हालांकि उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका कहना था, भाषा में जितने प्रयोग होंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी। शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे।
जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने अपने सुपुत्र अमित प्रकाश सिंह के परिवार के साथ हरिद्वार के पास ज्वालापुर में बिताए। अंतिम वर्षों में भी काफी जीवंत रहे। वार्धक्य ने शरीर पर भले ही असर डाला था पर उनकी स्मृति या रचनात्मकता मंद नहीं पड़ी थी।
9 दिसंबर 2007 को ग़ाजियाबाद में उनका निधन हो गया।
त्रिलोचन शास्त्री हिंदी के अतिरिक्त अरबी और फारसी भाषाओं के निष्णात ज्ञाता माने जाते थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वे खासे सक्रिय रहे है। उन्होंने प्रभाकर, वानर, हंस, आज, समाज जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
त्रिलोचन शास्त्री 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था में भी काम करते रहे और हिंदी व उर्दू के कई शब्दकोषों की योजना से भी जुडे़ रहे। उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की। इसके अतिरिक्त कहानी, गीत, ग़ज़ल और आलोचना से भी उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनका पहला कविता संग्रह धरती 1945 में प्रकाशित हुआ था। गुलाब और बुलबुल, उस जनपथ जनपद का कवि हूं और तपे ताप के ताये हुए दिन उनके चर्चित कविता संग्रह थे। दिगंत और धरती जैसी रचनाओं को कलमबद्ध करने वाले त्रिलोचन शास्त्री के 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
==पुरस्कार व सम्मान==
त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था। हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे 'शास्त्री' और 'साहित्य रत्न' जैसे उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है। 1982 में ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।