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"पेड़ और धर्म / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर

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पेड़ हो बड़ा  
 
पेड़ हो बड़ा  
 
खूब हो घना  
 
खूब हो घना  
खुशबूदार फूलर हों  
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खुशबूदार फूल हों  
 
फल मीठे आते हों लदकर  
 
फल मीठे आते हों लदकर  
  

10:24, 12 अगस्त 2011 का अवतरण

बस्ती के हर आँगन में
पेड़ हो बड़ा
खूब हो घना
खुशबूदार फूल हों
फल मीठे आते हों लदकर


छाँव उसकी बड़ी दूर तक जाए
खुशबू की कहानियाँ हो घर - घर


हवा के झोंके में
झरते रहें फलर
उठाते-खाते गुजरते रहें राहगीर


ऐसा एकर पेड़
बस्ती के हर आँगन में
लगाना ही होगा


लोग
भूल गए हैं – धर्म
पेड़ों को बतानान ही होगा।
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