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असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 3

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ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते
[[चित्र:Veena_instrumentVichitra Veena1.jpg]]
मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।
[[चित्र:Veena_instrumentVichitra Veena1.jpg]]
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