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असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 3

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|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"अज्ञेय
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[[Category:लम्बी कवितारचना]]{{KKPageNavigation[[|पीछे=असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 2 |<< पिछला भाग]]आगे=असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 4|सारणी=असाध्य वीणा / अज्ञेय}}[[चित्र:Veena_instrumentVichitra Veena1.jpg]]<poem>मैं सुनूँ,<br>गुनूँ,<br>विस्मय से भर आँकू<br>तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर<br>तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय--<br>गा तू :<br>तेरी लय पर मेरी साँसें<br>भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।<br>"गा तू !<br>यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।<br>किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,<br>रस-विद,<br>तू गा :<br>मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा<br>स्मृति का<br>श्रुति का --<br><br> तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !<br><br> " हाँ मुझे स्मरण है :<br>बदली -- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट।<br>घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना।<br>चौंके खग-शावक की चिहुँक।<br>शिलाओं को दुलारते वन-झरने के<br>द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।<br>कुहरें में छन कर आती<br>पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।<br>गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।<br>कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :<br>ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br><br>
[[चित्र:Veena_instrument.jpg]]<br><br>तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !
मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br>" हाँ मुझे स्मरण है : भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसरबदली -ध्वनि।<br>कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।<br>पंख-युक्त सायककौंध -सी हंस-बलाका।<br>पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट। चीड़-वनो घनी रात में गन्धमहुए का चुपचाप टपकना। चौंके खग-अन्ध उन्मद मतंग शावक की जहाँचिहुँक। शिलाओं को दुलारते वन-तहाँ टकराहट<br>झरने के द्रुत लहरीले जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।<br>कल-निनाद। झिल्लीकुहरें में छन कर आती पर्वती गाँव के उत्सव-दादुर, कोकिल-चातक ढोलक की झंकार पुकारों थाप। गड़रिये की यति में<br>अनमनी बाँसुरी। संसृति कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की साँयआतुर फुरकन : ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-साँय।<br><br>झरते
"हाँ मुझे स्मरण है [[चित्र:<br>दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़<br>हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।<br>घरघराहट चढ़ती बहिया की।<br>रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।<br>झंझा की फुफकार, तप्त,<br>पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।<br><br>Vichitra Veena1.jpg]]
ओले मानो हरसिंगार का फूल बन गयी। भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि। कूँजो की कर्री चपत।<br>क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की। जमे पालेपंख-ले तनी कटारीयुक्त सायक-सी सूखी घासों की टूटन।<br>ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरेहंस-धीरे रिसना।<br>बलाका। हिमचीड़-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।<br>घाटियों वनो में भरती<br>गिरती चट्टानों गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की गूंज जहाँ-तहाँ टकराहट जल-<br>प्रपात का प्लुत एकस्वर। काँपती मन्द्र झिल्ली-- अनुगूँज -- साँस खोयी-सीदादुर,<br>कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में धीरेसंसृति की साँय-धीरे नीरव।<br><br>साँय।
"हाँ मुझे स्मरण है<br>: हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर<br>बँधे समय वनदूर पहाड़ों-पशुओं से काले मेघों की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :<br>बाढ़ गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।<br>हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ। कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित<br>घरघराहट चढ़ती बहिया की। जलरेतीले कगार का गिरना छ्प-पंछी की चाप।<br>छपाड़। थाप दादुर झंझा की चकित छलांगों की।<br>फुफकार, तप्त, पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।<br>अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br>पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।
[[चित्र:Veena_instrument.jpg]]<br><br>ओले की कर्री चपत। जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन। ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना। हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप। घाटियों में भरती गिरती चट्टानों की गूंज -- काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी, धीरे-धीरे नीरव।
"मुझे स्मरण है
हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-पंछी की चाप।
थाप दादुर की चकित छलांगों की।
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।
[[चित्र:Vichitra Veena1.jpg]]
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