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[[Category:लम्बी रचना]]
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[[चित्र:Vichitra Veena1.jpg]]
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मैं सुनूँ,
गुनूँ,
विस्मय से भर आँकू
तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर
तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय--
गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँसें
भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।
"गा तू !
यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।
किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,
रस-विद,
तू गा :
मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा
स्मृति का
श्रुति का --
[[असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 2 |<< पिछला भाग]]तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !
[[चित्र" हाँ मुझे स्मरण है :Veena_instrument.jpg]]बदली -- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट। घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना। चौंके खग-शावक की चिहुँक। शिलाओं को दुलारते वन-झरने के द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद। कुहरें में छन कर आती पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप। गड़रिये की अनमनी बाँसुरी। कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन : ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते
मैं सुनूँ,<br>गुनूँ,<br>विस्मय से भर आँकू<br>तेरे अनुभव का एक-एक अन्त[[चित्र:स्वर<br>तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय--<br>गा तू :<br>तेरी लय पर मेरी साँसें<br>भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।<br>"गा तू !<br>यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग।<br>किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,<br>रस-विद,<br>तू गा :<br>मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा<br>स्मृति का<br>श्रुति का --<br><br>Vichitra Veena1.jpg]]
तू गामानो हरसिंगार का फूल बन गयी। भरे शरद के ताल, तू गालहरियों की सरसर-ध्वनि। कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की। पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका। चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर। झिल्ली-दादुर, तू गा, तू गा !<br><br>कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में संसृति की साँय-साँय।
" हाँ मुझे स्मरण है :<br>बदली दूर पहाड़ों-- कौंध -- पत्तियों पर वर्षा बूँदों से काले मेघों की पटापट।<br>बाढ़ घनी रात में महुए हाथियों का चुपचाप टपकना।<br>मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ। चौंके खग-शावक की चिहुँक।<br>शिलाओं को दुलारते वन-झरने के<br>घरघराहट चढ़ती बहिया की। द्रुत लहरीले जल रेतीले कगार का कलगिरना छ्प-निनाद।<br>छपाड़। कुहरें में छन कर आती<br>पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक झंझा की थाप।<br>फुफकार, तप्त, गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।<br>कठफोड़े पेड़ों का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :<br>ओसअररा कर टूट-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br><br>टूट कर गिरना।
[[चित्र:Veena_instrument.jpg]]<br><br> मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br>भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।<br>कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।<br>पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।<br>चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट<br>जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।<br>झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में<br>संसृति की साँय-साँय।<br><br> "हाँ मुझे स्मरण है :<br>दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़<br>हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।<br>घरघराहट चढ़ती बहिया की।<br>रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।<br>झंझा की फुफकार, तप्त,<br>पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।<br><br> ओले की कर्री चपत।<br>जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।<br>ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना।<br>हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।<br>घाटियों में भरती<br>गिरती चट्टानों की गूंज --<br>काँपती मन्द्र -- अनुगूँज -- साँस खोयी-सी,<br>धीरे-धीरे नीरव।<br><br> "मुझे स्मरण है<br>हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर<br>बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :<br>गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।<br>कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित<br>जल-पंछी की चाप।<br>थाप दादुर की चकित छलांगों की।<br>पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।<br>अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br> [[चित्र:Veena_instrument.jpg]]<br><br>
"मुझे स्मरण है
हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-पंछी की चाप।
थाप दादुर की चकित छलांगों की।
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।
[[चित्र:Vichitra Veena1.jpg]]
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