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(आपको सन्त कबीर के नये दोहे मिलें तो उन्हें यहाँ जोड़ने का कष्ट करें।)
हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार ।
श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥ 901 ॥
या दुनिया दो रोज की, मत कर या सो हेत ।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत ॥ 902 ॥
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥