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कन्हैया लाल सेठिया / परिचय

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{{KKRachnakaarParichay
|रचनाकार=नीरज दइयाकन्हैया लाल सेठिया
}}<poem>'''महाकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया'''
विवाह : 1937 में श्रीमती धापू देवी के साथ।
सन्तान : दो पुत्र- जयप्रकाश एवं विनयप्रकाश तथा एक पुत्री श्रीमती सम्पत देवी दूगड़
अध्ययन : बी.ए.सेठिया जी की प्रारम्भिक पढ़ाई कलकत्ता में हुई। स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के कारण कुछ समय के लिए आपकी शिक्षा बाधित हुई, लेकिन बाद में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दर्शन, राजनीति और साहित्य आपके प्रिय विषय थे।
निधन : 11 नवंबर 2008
राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध कवि है। जन्म राजस्थान के चूरु जिले के सुजानगढ़ शहर में हुआ। व्यापारिक घराने से होने के बावजूद श्री सेठिया ने कभी भी साहित्य के साथ समझौता नहीं किया।
पद्मश्री (2004) सेठिया जी को लीलटांस राजस्थानी कविता संग्रह पर साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली का पुरस्कार प्रदान किया गया तथा वर्ष 1988 में ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी साहित्य पुरास्कार से भी सम्मानित किया गया। आ तो सुरगा नै सरमावै, ई पै देव रमन नै आवे .......... धरती धोराँ री हो अथवा अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो....जैसी अनेक रचनाएं अति लोकप्रिय और सर्वविदित अमर रचनाएं हैं। राजस्थान में सामंतवाद के ख़िलाफ़ आपने जबरदस्त मुहिम चलायी और पिछडे वर्ग को आगे लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत छोडो आन्दोलन के समय आप कराची में थे। 1943 में सेठिया जी जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए।
राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध कवि है। जन्म राजस्थान के चूरु जिले के सुजानगढ़ शहर में हुआ। कुछ कृतियाँ है:- '''राजस्थानी'''रमणियां रा सोरठा , गळगचिया , मींझर , कूंकंऊ , लीलटांस , धर कूंचा धर मंजळां , मायड़ रो हेलो , सबद , सतवाणी , अघरीकाळ , दीठ , क क्को कोड रो , लीकलकोळिया एवं हेमाणी पद्मश्री (2004) सेठिया जी को लीलटांस राजस्थानी कविता संग्रह पर साहित्य अकादेमी'''हिन्दी'''वनफूल , नई दिल्ली का पुरस्कार प्रदान किया गया तथा वर्ष 1988 में ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी साहित्य पुरास्कार से भी सम्मानित किया गया। आ तो सुरगा नै सरमावैअग्णिवीणा , ई पै देव रमन नै आवे .......... धरती धोराँ री हो अथवा अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो....जैसी अनेक रचनाएं अति लोकप्रिय और सर्वविदित अमर रचनाएं हैं।मेरा युग , दीप किरण , प्रतिबिम्ब , आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते , प्रणाम , मर्म , अनाम, निर्ग्रन्थ , स्वागत , देह-विदेह , आकाशा गंगा , वामन विराट , श्रेयस , निष्पति एवं त्रयी ।'''उर्दू'''ताजमहल एवं गुलचीं ।
'''सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण'''
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