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यहीं कोई नदी होती / ओम निश्चल

3 bytes added, 17:32, 19 सितम्बर 2011
बसाते हम क्षितिज की छॉंव में
कोई बसेरा-सा
खिली सरसों कहीं सरसों खिली होती
कहीं फूली मटर होती
यहीं कोई भँवर होता
कि जैसे गॉंव की बगिया में
कोयल गीत गाती हो
उनींदे स्वप्न स्‍वप्न के परचम
फहरते रोज नींदों में
तुम्हारी सॉंवली सूरत
बगल में मुस्काराती हो
तुम्हारे तुम्हांरे साथ इक लंबे सफर पर फिर गुज़रना हो।
भटकते चित्त् चित्त को विश्वास का
एक ठौर मिल जाए
मुहब्बत के चरागों को
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