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"किस डर से / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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<poem>किस डर से
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      उठती नहीं आंखें
+
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      हिलते नहीं होंठ
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|रचनाकार=नवनीत पाण्डे
      धूजते हैं हाथ-पैर
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      पहाड़ हो जाते हैं कंकड़
+
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      समंदर चुल्लू
+
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      आसमान गिर पड़ता है धरती पर
+
<poem>
      बिना किसी आहट के
+
किस डर से
      और धरती हो जाती है स्वर्गीय  
+
उठती नहीं आंखें
      किस डर से
+
हिलते नहीं होंठ
      टूट रहे हैं दर्पण
+
धूजते हैं हाथ-पैर
      बिखर रहे हैं बिम्ब
+
पहाड़ हो जाते हैं कंकड़
      सड़ रहे हैं प्रतीक
+
समंदर चुल्लू
      कुंदा रही है कलम
+
आसमान गिर पड़ता है धरती पर
      षब्द मांग रहे हैं भीख
+
बिना किसी आहट के
      किताबें हो रही हैं अंधी
+
और धरती हो जाती है स्वर्गीय  
      सर्जक खड़ा है कटोरा लिए दूकानों पर
+
किस डर से
      और सब चुप!!!
+
टूट रहे हैं दर्पण
      किस डर से.........  
+
बिखर रहे हैं बिम्ब
 +
सड़ रहे हैं प्रतीक
 +
कुंदा रही है कलम
 +
शब्द मांग रहे हैं भीख
 +
किताबें हो रही हैं अंधी
 +
सर्जक खड़ा है कटोरा लिए दूकानों पर
 +
और सब चुप!!!
 +
किस डर से.........  
 
</poem>
 
</poem>

04:37, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

किस डर से
उठती नहीं आंखें
हिलते नहीं होंठ
धूजते हैं हाथ-पैर
पहाड़ हो जाते हैं कंकड़
समंदर चुल्लू
आसमान गिर पड़ता है धरती पर
बिना किसी आहट के
और धरती हो जाती है स्वर्गीय
किस डर से
टूट रहे हैं दर्पण
बिखर रहे हैं बिम्ब
सड़ रहे हैं प्रतीक
कुंदा रही है कलम
शब्द मांग रहे हैं भीख
किताबें हो रही हैं अंधी
सर्जक खड़ा है कटोरा लिए दूकानों पर
और सब चुप!!!
किस डर से.........