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"ढलता सूरज / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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<poem>घर के बाहर खड़ा
 
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वह देख रहा है अपना घर
 
वह देख रहा है अपना घर

04:42, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

घर के बाहर खड़ा
वह देख रहा है अपना घर
उसका भीतर
भीतर का भीतर
मैं देख रहा हूं उसके चेहरे पर
अनंत के सारे रंग
अंत के सारे रूप
दूर आसमान में
झीने-झीने बादलों के पीछे
धुंधलाता,अपनी चमक ढोता
ढलता सूरज