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Kavita Kosh से
और बह निकलते हैं, अपने निर्बाध प्रवाह में।
तुम सामने बैठी रहती हो
आंखों में लिए एक प्रष्नप्रश्न, जिज्ञासु ?
वहां से प्रारंभ होती है कविता।
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