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इक न इक दिन हमें जीने का हुनर आएगा / प्रेमचंद सहजवाला
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10:56, 21 नवम्बर 2011
जाने कब छांव घनी देता शजर<ref>वृक्ष</ref> आएगा
अपना सर सजदे में उस दर पे मुसलसल<ref>
लगातार
</ref> रख दे
इक न इक तो इबादत में असर आएगा
</Poem>
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आशिष पुरोहित
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