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तीन दोस्त / दुष्यंत कुमार

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|रचनाकार= दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार
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सब बियाबान, सुनसान अँधेरी राहों मेंखंदकों खाइयों मेंरेगिस्तानों में, चीख कराहों मेंउजड़ी गलियों मेंथकी हुई सड़कों में, टूटी बाहों मेंहर गिर जाने की जगहबिखर जाने की आशंकाओं मेंलोहे की सख्त शिलाओं सेदृढ़ औ’ गतिमयहम तीन दोस्तरोशनी जगाते हुए अँधेरी राहों परसंगीत बिछाते हुए उदास कराहों परप्रेरणा-स्नेह उन निर्बल टूटी बाहों परविजयी होने को सारी आशंकाओं परपगडंडी गढ़तेआगे बढ़ते जाते हैंहम तीन दोस्त पाँवों में गति-सत्वर बाँधेआँखों में मंजिल का विश्वास अमर बाँधे।X X X Xहम तीन दोस्तआत्मा के जैसे तीन रूप,अविभाज्य--भिन्न।ठंडी, सम, अथवा गर्म धूप--ये त्रय प्रतीकजीवन जीवन का स्तर भेदकरएकरूपता को सटीक कर देते हैं।हम झुकते हैंरुकते हैं चुकते हैं लेकिनहर हालत में उत्तर पर उत्तर देते हैं।X X X Xहम बंद पड़े तालों से डरते नहीं कभीअसफलताओं पर गुस्सा करते नहीं कभीलेकिन विपदाओं में घिर जाने वालों कोआधे पथ से वापस फिर जाने वालों कोहम अपना यौवन अपनी बाँहें देते हैंहम अपनी साँसें और निगाहें देते हैंदेखें--जो तम के अंधड़ में गिर जाते हैंवे सबसे पहले दिन के दर्शन पाते हैं।देखें--जिनकी किस्मत पर किस्मत रोती हैमंज़िल भी आख़िरकार उन्हीं की होती है।X X X Xजिस जगह भूलकर गीत न आया करते हैंउस जगह बैठ हम तीनों गाया करते हैंदेने के लिए सहारा गिरने वालों कोसूने पथ पर आवारा फिरने वालों कोहम अपने शब्दों में समझाया करते हैंस्वर-संकेतों से उन्हें बताया करते हैं--‘तुम आज अगर रोते हो तो कल गा लोगेतुम बोझ उठाते हो, तूफ़ान उठा लोगेपहचानो धरती करवट बदला करती हैदेखो कि तुम्हारे पाँव तले भी धरती है।’X X X Xहम तीन दोस्त इस धरती के संरक्षण मेंहम तीन दोस्त जीवित मिट्टी के कण कण मेंहर उस पथ पर मौजूद जहाँ पग चलते हैंतम भाग रहा दे पीठ दीप-नव जलते हैंआँसू केवल हमदर्दी में ही ढलते हैंसपने अनगिन निर्माण लिए ही पलते हैं। हम हर उस जगह जहाँ पर मानव रोता हैअत्याचारों का नंगा नर्तन होता हैआस्तीनों को ऊपर कर निज मुट्ठी तानेबेधड़क चले जाते हैं लड़ने मर जानेहम जो दरार पड़ चुकी साँस से सीते हैंहम मानवता के लिए जिंदगी जीते हैं।X X X Xये बाग़ बुज़ुर्गों ने आँसू औ’ श्रम देकरपाले से रक्षा कर पाला है ग़म देकरहर साल कोई इसकी भी फ़सलें ले खरीदकोई लकड़ी, कोई पत्तों का हो मुरीदकिस तरह गवारा हो सकता है यह हमकोये फ़सल नहीं बिक सकती है निश्चय समझो।...हम देख रहे हैं चिड़ियों की लोलुप पाँखेंइस ओर लगीं बच्चों की वे अनगिन आँखेंजिनको रस अब तक मिला नहीं है एक बारजिनका बस अब तक चला नहीं है एक बारहम उनको कभी निराश नहीं होने देंगेजो होता आया अब न कभी होने देंगे।X X X Xओ नई चेतना की प्रतिमाओं, धीर धरोदिन दूर नहीं है वह कि लक्ष्य तक पहुँचेंगेस्वर भू से लेकर आसमान तक गूँजेगासूखी गलियों में रस के सोते फूटेंगे। हम अपने लाल रक्त को पिघला रहे औरयह लाली धीरे धीरे बढ़ती जाएगीमानव की मूर्ति अभी निर्मित जो कालिख सेइस लाली की परतों में मढ़ती जाएगीयह मौनशीघ्र ही टूटेगाजो उबल उबल सा पड़ता है मन के भीतरवह फूटेगा,आता ही निशि के बादसुबह का गायक है,तुम अपनी सब सुंदर अनुभूति सँजो रक्खोवह बीज उगेगा हीजो उगने लायक़ है।X X X X
हम तीन बीज
उगने के लिए पड़े हैं हर चौराहे पर
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