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"खेंची लबों ने आह के सीने पे आया हाथ / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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('खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ । बस पर सवार दूर से...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
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खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
 
खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
 
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।
 
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।
  
 
महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
 
महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास[1] मगर मुस्कुराया हाथ ।
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लहजा था ना-शनास<ref>अपरिचित</ref> मगर मुस्कुराया हाथ ।
  
 
फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
 
फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
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हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।
 
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।
  
 
मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी,  
 
मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी,  
 
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।
 
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।
 
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शब्दार्थ:
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↑ अपरिचित
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↑ सुबह की ख़ुशबूदार हवा
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↑ तअल्लुक़ात
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19:14, 26 नवम्बर 2011 का अवतरण

खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।

महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास<ref>अपरिचित</ref> मगर मुस्कुराया हाथ ।

फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा<ref>सुबह की ख़ुशबूदार हवा</ref> ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।

यँू ज़िन्दगी से मेरे मरासिम<ref>तअल्लुक़ात</ref> हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।

मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी,
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।

शब्दार्थ
<references/>

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