लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=दुष्यंत कुमार]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार]]}}{{KKCatKavita}}<poem>किन्तु जो तिमिर-पानऔ' ज्योति-दानकरता करता बह गयाउसे क्या कहूँकि वह सस्पन्द नहीं था ?
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~और जो मन की मूक कराहज़ख़्म की आहकठिन निर्वाहव्यक्त करता करता रह गयाउसे क्या कहूँगीत का छन्द नहीं था ?
किन्तु जो तिमिर-पान<br>औ' ज्योति-दान<br>करता करता बह गया<br>उसे क्या कहूँ<br>कि वह सस्पन्द नहीं था?<br><br> और जो मन की मूक कराह<br>ज़ख़्म की आह<br>कठिन निर्वाह<br>व्यक्त करता करता रह गया<br>उसे क्या कहूँ<br>गीत का छन्द नहीं था?<br><br> पगों कि संज्ञा में है<br>गति का दृढ़ आभास,<br>किन्तु जो कभी नहीं चल सका<br>दीप सा कभी नहीं जल सका<br>कि यूँही खड़ा खड़ा ढह गया<br>उसे क्या कहूँ<br>जेल में बन्द नहीं था?<br><br/poem>