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"चितवन का जादू / रामनरेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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रुचि रह जाती नहीं खान में न पान में,
 
रुचि रह जाती नहीं खान में न पान में,
 
::न गान में न मान में न ध्यान में न धन में।
 
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:चित्र में खचित-सा अचेत रहता है नित,
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चित्र में खचित-सा अचेत रहता है नित,
 
::जाता है चिपक जब चित चितवन में॥
 
::जाता है चिपक जब चित चितवन में॥
 
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18:09, 7 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

आँख लगती है तब आँख लगती ही नहीं
प्यास रहती है लगी सजल नयन में।
मन लगता ही नहीं वन में भवन में न,
सुंदर सुमन से सजाए उपवन में॥
रुचि रह जाती नहीं खान में न पान में,
न गान में न मान में न ध्यान में न धन में।
चित्र में खचित-सा अचेत रहता है नित,
जाता है चिपक जब चित चितवन में॥