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15 सितम्बर वर्ष 1919 में को जन्मे इस इंसान का नाम यूँ तो "मोहम्मद हैदर खान" था लेकिन शायद ही कोई उनके इस नाम से वाकिफ हो, वो तो मशहूर थे खुमार बाराबंकवी या खुमार साहब के नाम से | बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग 'दुल्लन' भी बुलाते थे |
"खुमार" ने शहर के सिटी इंटर कालेज से आठवीं तक शिक्षा ग्रहण की । इसके पश्चात वह राजकीय इंटर कालेज बाराबंकी जिसकी मान्यता उस समय हाईस्कूल तक ही थी वहां से कक्षा 10 की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात लखनऊ के जुबली इंटर कालेज में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा।
खुमार की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल की गई। उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, जिगर मुरादाबादी, उर्दू अवार्ड, उर्दू सेंटर कीनिया और अकादमी नवाये मीर उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद, मल्टी कल्चरल सेंटर ओसो कनाडा, अदबी संगम न्यूयार्क, दीन दयाल जालान सम्मान वाराणसी, कमर जलालवी एलाइड्स कालेज पाकिस्तान आदि ने सम्मानित किया।
वर्ष 1992 में दुबई में खुमार की प्रसिद्धि और कामयाबी के लिये जश्न मनाया गया। 25 सितम्बर 1993 को बाराबंकी जिले में जश्न-ए-खुमार का आयोजन किया गया। जिसमें तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा वोरा ने एक लाख की धनराशि व प्रशस्ति पत्र उन्हें देकर सम्मानित किया।
खुमार का अंतिम समय काफी कष्टप्रद रहा। मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से ही उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था। 13 फरवरी 99 को उनकी हालत गंभीर हो गई। उन्हें लखनऊ के मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। जहाँ 19 फरवरी की रात उन्होंने आखिरी साँस ली। अब वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के ज़हन में ताज़ा हैं।