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"ओमर्थज्ञान / नाथूराम शर्मा 'शंकर'" के अवतरणों में अंतर

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ओमनेक बार बोल, प्रेम के प्रयोगी।
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ओमक्षर अखिलाधार,
है यही अनादि नाद, निर्विकल्प निर्विवाद,
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जिसने जान लिया।
भूलते न पूज्यपाद, वीतराग योगी।
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वेद को प्रमाण मान, अर्थ-योजना बखान,
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एक, अखण्ड, अकाय, असंगी, अद्वितीय, अविकार,
गा रहे गुणी सुजान, साधु स्वर्गभोगी।
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व्यापक, ब्रह्म, विशुद्ध विधाता, विश्व, विश्वभरतार-
ध्यान में धरें विरक्त, भाव से भजें सुभक्त,
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को पहचान लिया।
त्यागते अघी अशक्त, पोच पाप-रोगी।
+
 
शंकरादि नित्य नाम, जो जपे विसार काम,
+
भूतनाथ, भुवनेश, स्वयंभू, अभय, भावभण्डार,
तो बने विवेक धाम, मुक्ति क्यों न होगी।
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नित्य, निरंजन, न्यायनियन्ता, निर्गुण, निगमागार-
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मनु को मान लिया।
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करुणाकन्द, कृपालु, अकर्त्ता, कर्महीन करतार,
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परमानन्द, पयोधि, प्रतापी, पूरण, परमोदार-
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से सुखदान लिया।
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सत्य सनातन श्रीशंकर को समझा सबका सार,
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अपना जीवन-बेड़ा उसने भवसागर से पार-
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करना ठान लिया।
 
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11:28, 22 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

ओमक्षर अखिलाधार,
जिसने जान लिया।

एक, अखण्ड, अकाय, असंगी, अद्वितीय, अविकार,
व्यापक, ब्रह्म, विशुद्ध विधाता, विश्व, विश्वभरतार-
को पहचान लिया।

भूतनाथ, भुवनेश, स्वयंभू, अभय, भावभण्डार,
नित्य, निरंजन, न्यायनियन्ता, निर्गुण, निगमागार-
मनु को मान लिया।

करुणाकन्द, कृपालु, अकर्त्ता, कर्महीन करतार,
परमानन्द, पयोधि, प्रतापी, पूरण, परमोदार-
से सुखदान लिया।

सत्य सनातन श्रीशंकर को समझा सबका सार,
अपना जीवन-बेड़ा उसने भवसागर से पार-
करना ठान लिया।