|संग्रह=पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब / ज्यून तकामी
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[[Category:जापानी भाषा]]
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मैं लेटा हुआ था
औ' दीवार पर लगे आईने में
झलक रहा था बग़ीचा
लेट कर जब तभी कोशिश की मैंनेयह देखने की—
दर्पण कैसे समा जाती है हरियालीइस आईने में झाँका
अचानकआकाश की चमक सेमेरी आँखें चौंधियाईंऔर बगीचे के हरेपन को मुझे चक्कर आने लगा
देखने की कोशिश कीमेरी जान निकल गईसिर घूम रहा थाऔर बेतहाशादर्द हो रहा था मेरे सिर में
दर्पण में दिखाई दिया मुझे'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' प्रतिबिम्ब आसमान का । ऎसा लगा अचानक जैसे किसी ने आँखों पर मेरी किया हो वार बेहोश हो गया मैं सिर चकराने लगा मेरा कठोर था, बेहद कठोर अनुभव का यह प्रहार । दर्द से सिर</poem>