"अजगरी संत्रास / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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प्रश्-सूचक चिन्ह | प्रश्-सूचक चिन्ह | ||
सारी रात | सारी रात | ||
− | + | टूटता अपनत्व कुंठित | |
− | + | व्योम से विच्छिन्न | |
उल्कापात | उल्कापात | ||
थक गई है नब्ज जब संवेदना की | थक गई है नब्ज जब संवेदना की | ||
क्या करे कमज़ोर संजीवन | क्या करे कमज़ोर संजीवन | ||
− | + | निवेदन | |
ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन। | ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन। | ||
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03:09, 8 जनवरी 2012 का अवतरण
तन गई हैं इस क़दर युग मान्यताएँ
घुट गया है गीत का जीवन
अरे, मन !
साँस धीमे ले बढ़ेगी और जकड़न
सामने है व्यंग्य, पीछे
विष-बुझा परिहास
आदमखोर
शब्दहीन वेदना को
बींधता सायास
दुहरा शोर
खींचता है अजगरी संत्रास भूखा
मुट्ठियों में बंद खालीपन
अचेतन
धमनियों में तैर जाता बाँस का बन ।
टीसते हैं खिड़कियों के
प्रश्-सूचक चिन्ह
सारी रात
टूटता अपनत्व कुंठित
व्योम से विच्छिन्न
उल्कापात
थक गई है नब्ज जब संवेदना की
क्या करे कमज़ोर संजीवन
निवेदन
ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन।