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विदेशिनी-3 / कुमार अनुपम

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और प्राक्-स्मृतियों में कहीं चल पड़े
बहुत मद्धिम पाहों फ़ाहों वाली ओस
दृश्यों पर कुतूहल की तरह गिरती थी
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