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| == || कफ़न || == | | == || कफ़न || == |
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− | कब होती है सुबह, सूरज कब शाम का ढलता है,
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− | करता है मेहनत परिश्रम, नहीं एक पल रुकता है,
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− | जीवन है जीवन चक्र है, बस चलता है बस चलता है,
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− | ढल जाती है शाम, अँधेरा जब धरती पर छा जाता है,
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− | नहीं नींद में रुकता इकपल, सपनों में दोलत बुनता है,
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− | जीवन है जीवन चक्र है, बस चलता है बस चलता है,
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− | महल बनाता मिटटी का, रिस्तो से सर्जन करता है,
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− | ढह जाता है पलभर में सब, नहीं पता कुछ चलता है
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− | जीवन है जीवन चक्र है, बस चलता है बस चलता है,
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− | रह जाता है सब कुछ यंहा, नहीं साथ कुछ चलता है,
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− | मिलती है अग्नि उनसे, जिनको वो अपना कहता है ,
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− | जीवन है जीवन चक्र है, बस चलता है बस चलता है,
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− | कभी प्रेम से मिलता है, कभी नफरत से जलता है,
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− | कभी ख़ुशी की आहट से, कभी दुःख से आहें भरता है
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− | जीवन है जीवन चक्र है, बस चलता है बस चलता है,
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− | रुक जाती हैं सांसें, ओर अर्थी जब कंधो पर ले चलता है,
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− | देखलो खाली हाथ उनके, साथ में क्या चलता है,
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− | मृत्यु अंतिम सत्य, कफ़न ढाई गज का मिलता है,
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− | जीवन है जीवन चक्र है, बस चलता है बस चलता है,
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− | रचना : महावीर जोशी पूलासर (सरदारशहर) 18-12-2011
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22:51, 31 जनवरी 2012 का अवतरण
प्रिय महावीर जोशी पूलासर, कविता कोश पर आपका स्वागत है!
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मोरियो पगा कानी देख गे रोवै
क्यु जी सोरो करै,
दुसरा गै घर री बाता सुण गै,
जकी बी घर मॆ हॊवण लागरी है
बा ही तॊ तॆरॆ घर मॆ हॊवॆ,
तु भीत रै चिप्यॊडॊ इनै,
बॊ ही तॊ बिनॆ चिप्यॊडॊ खड्यॊ है,
क्यु नी सॊचै तु कै ..भीता कै भी कान हॊवॆ,
आज तु सुणसी
काल बॊ तॆरी सुणसी,
क्यु सरमा मरै,
मॊरीयॊ पगा कानी दॆख गॆ रॊवै ,
ये केसा संसार है
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है,
कुछ लॊगॊ कॆ पास है हीरॆ,
कुछ रॊटी बिन बिमार है,
कहतॆ धरती मा सबकी फिर भॆद क्यु बॆसुमार है,
ममता तॆरी तु है मा फिर माता क्यु लाचार है,
सुनॆ पडॆ है महल यहा फुटपाथॊ पर भरमार है,
कुछ बन गयॆ ताज यहा,
कुछ दानॆ कॊ मॊहताज है,
खुस यहा है पैसॆ सॆ सब,
भुखॊ सॆ नाराज है,
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है
रचना... महावीर जोशी पूलासर
आपका आवेदन
महावीर जी, कविता कोश के लिए आपका आवेदन विचाराधीन है। कृपया निर्णय की प्रतीक्षा करें। बिना कविता कोश टीम की अनुमति के आप जो भी रचनाएँ कोश में जोड़ेंगे उन तक पाठक नहीं पहुँच पाएंगे। अत: आपसे प्रार्थना है कि आप धैर्य रखें।
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